बुधवार, 17 अक्टूबर 2012

तपन का एक दिन



  तपन का एक दिन
आग सी जलती हवाओं के तीरों के बीच
एक उदास सी जि़न्दगी
भटकती बढ़ चली
अपने मीत की ओर
एक ठंडा सुकून
दिल में पाने की ख्वाहिष लिये हुए...
सूखे तड़फते होंठ लिये...
धरा के दहकते अंगारों पर...
आषाओं के कदमों से चलते हुए..
यह जि़न्दगी मेरी ‘मीत मंजिल‘ जा पहुंची...!!
क्या मिला उसे......
सिर्फ एक कुंद तन्हाई का आलम..
उदासी भरे खामोषी के स्वर...
विचारों से कल्पित एक धुंधली छवि...
तन्हाई की क्रूर हंसी ने
इस तड़फती जि़न्दगी को और घायल कर दिया
गिर पड़ी ज़मीन पर बेज़ान सी बेहोष
आंखों में मीत के इंतज़ार के दो मोती लिये..!!
03-06-1981

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