सोमवार, 8 अक्टूबर 2012

मेरी कुछ रचनाएँ .....



हर नयी सुबह
निन्द्रा से जागते हुए ये - सूर्यकण
भय से भागते हुए ये - काली रातों के साये
हल्की सी मचलती ये - ठंडी हवा
इसी धुंधली सुबह के पहलू में
किसी नयी आषा को प्रज्वलित करती हुई ये
- मानव की जीवित लाष
दफन होती है
हर नयी सुबह के साथ ।
25.04.1981

पल
हवाओं की सीढी पर
विचारों के कदम से
आषाओं की मंजिल लिये
एक असहाय सा पल
अतीत में
विहिन की ओर निहारते हुए
पल पल
अपने पग बढ़ाते जा रहा है।
08.03.1981

खामोष ज़ुबाॅ
खामोषी सुनती हुई काया
बंद आंखों से निहारती
थमी हुई सांसों का स्वर सुनने के लिये
प्रतिक्षा
सिर्फ एक खामोष प्रतिक्षा....
क्या मिलता है संसार में....
पल दो पल का सुख...!!
कुछ क्षण का वसंत..!!
इस अस्थायी वैभव के पष्चात
सिर्फ मिलती है एक अमर खामोषी
चिरनिन्द्रा में खोई खामोषी..!
21.05.1981

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